स्वामी रामदासजी कृत आरती | Swami Ramdasji Krit Aarti

स्वामी रामदासजी कृत आरती


आरती केवल ब्रह्म की कीजे ।

अमृत नाम सदा रस पीजे ॥


चंद्र न सूर्य पवन नही पासा।

जहां पहुंचे कोई बिरले दासा ॥


सब घट पूरन अलख अनंदा ।

ज्यों जल मध्ये दिखत चंदा ।।


तीरथ वृत और प्रतिमा की आसा ।

वे नर पावे गर्भ निवासा ।।


आलम डूबी ब्रह्म के माही।

आंधरी दुनिया सूझत नाही।।


दूर नहीं कहि आस ही पासा ।

ज्यो फूल मध्ये रहत है वासा ।।


कहे राम दास गुरू अलख लखावै ।

योनि संकट बहुरि न आवै ।।



स्वामी रामदासजी कृत आरती


आरती पारिब्रह्म तुम्हारी ।

तुमसे काया बणी हमारी ।।


काया नगरी में तेरह दरवाजे ।

तीन गुप्त दस प्रकट बिराजे ।।


अष्ट कमल जहां प्रभुजी का वासा।

मन दीपक जहाँ ज्योत प्रकासा ।।


भूली दुनिया प्रतिमा को ध्यावे ।

योनि संकट बहुरि न आवै।।


निर्गुण ब्रह्म है सचराचारा।

जाकि तरंग उठे संसारा।।


अखण्ड ब्रह्म सकल से न्यारा।

कोटि भानु जहां उजियारा।।


कहे रामदास रखो विश्वासा ।

एक ही ब्रह्म सकल के पासा ।।


जय बोंदरू बाबा *




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